भारत का इतिहास (वैदिक सभ्यता )(3)

 भारत का इतिहास (वैदिक सभ्यता )(3)

ऋग वैदिक सभ्यता 


जैसा कि पिछले ब्लॉग हडप्पा की सभ्यता  में हमने बताया कि भारत की प्राचीनतम ज्ञात और प्रमाणिक सभ्यता हडप्पा की सभ्यता थी कुछ विद्वान हडप्पा की सभ्यता  और वैदिक सभ्यता को एक ही सभ्यता मानते हैं किन्तु कुछ प्रमाणों के अनुसार जैसाकि हडप्पा की सभ्यता  ब्लॉग में हमने बताया कि हडप्पा की सभ्यता  और वैदिक सभ्यता में कुछ मूलभूत अन्तर् हैं जिन्हें हमने हडप्पा की सभ्यता  ब्लॉग में भी बताया है कुछ विद्वान् यह भी मानते हैं कि वैदेक सभ्यता के लोग जिन्हें आर्य कहते हैं ने ही हडप्पा की सभ्यता का अंत किया इसके बारे में भी हडप्पा की सभ्यता  ब्लॉग में विस्तार से चर्चा की है फिलहाल इतिहासकारों के मतानुसार वैदिक सभ्यता हडप्पा की सभ्यता  की सभ्यता के कुछ समय पशचात की सभ्यता है इस ब्लॉग में हम वैदिक सभ्यता के बारे में चर्चा करेंगे 

वैदिक सभ्यता या संस्कृति 

वैदिक सभ्यता जिसे हम ऋग वेदीय सब्यता भी कहते हैं का ज्ञान हमें ऋग्वेद से प्राप्त हुआ है इस सभ्यता का समय 1500 से 1000 ई० पूर्व का बताया जाता है इस समय का कोई विस्वसनीय प्रमाण नहीं है यह समय केवल अनुमान अथवा कुछ तथ्यों के आधार पर बताया जाता है ऋग वेद सबसे पुराना ग्रन्थ है इसी वेद के आधार पर हमें इस सभ्यता के बारे में जानकारी मिलती है यह सभ्यता आर्यों की सभ्यता कही जाती है आर्य जोकि भारत के रहने बाले नहीं थे इनका मूल निवास मध्य एशिया का बताया जाता हैं ऐसा इसलिए माना जाता है क्यूंकि ऋग वेद में अफगानिस्तान की कई नदियों का वर्णन मिलता है जैसे कि कुभा ( आधुनिक नाम काबुल ), क्रमु (आधुनिक नाम कुर्रम), गोमती (आधुनिक नाम गोमल), सुवास्तु ( आधुनिक नाम स्वाति) आदि मैक्समूलर ने बताया था कि आर्य भारत के रहने वाले नहीं थे इसी तरह ऋग वेद में सप्त सैन्धव प्रदेश का भी वर्णन मिलता है जोकि सात नदियों का देश कहा जाता था यह सात नदियाँ सिन्धु, सरस्वती, शतुद्री (आधुनिक नाम सतलज), विपासा ( आधुनिक नाम व्यास), परुषिणी (आधुनिक नाम रावी), वितस्ता (आधुनिक नाम झेलम), अस्किनी (आधुनिक नाम चेनाव) का वर्णन मिलता है जो अफगानिस्तान तथा पंजाब का भाग हैं लेकिन यह जो नदियाँ हैं वह प्राचीन भारत में थी जैसा कि मैक्समूलर ने कहा है कि आर्य भारतीय नहीं थे किन्तु ऋग्वेद के अनुसार सप्त सैन्धव प्रदेश प्राचीन भारत का हिस्सा था और आर्य लोग इसी क्षेत्र के निवासी थे इस प्रकार हम कह सकते हैं कि मैक्समूलर का अनुमान गलत था और आर्य लोग उत्तर पशिम भारत के निवासी भारतीय ही थे 

आर्यों के निवास स्थान 

इतिहासकारो के अनुसार आर्य पहले अफगानिस्तान और फिर पंजाब में बसे फिर वहां से होते हुए मध्य भारत की तरफ आये आर्य अनेक कबीलों और जनों में बनते हुए थे इन जनो को पंच जन कहा जाता था यह पंच जन अनु, दृम्हा, यदु, तुर्वस, पुरु थे यह पंच जन लड़ाकू नहीं थे इन जनों के अतिरिक्त भरत, क्रवी, त्रिस्सु, सुन्जू आदि भी थे जो कि बहुत लड़का थे और आपस में ही परस्पर लड़ते रहते थे आर्यों की भाषा संस्कृत थी और रहन सहन ग्रामीण था 

दशराज्ञ युद्ध 

ऋग वेद के संत्वे मंडल में दशराज्ञ युद्ध (दस राजाओं के युद्ध)का वर्णन मिलता है इस युद्ध का कारण सुदास जो कि भरत जन का राजा थ ने विस्वमित्र को कुल पुरोहित के पद से हटाकर बशिष्ठ को कुल पुरोहित के पद पर नियुक्त कर दिया था इससे विस्वमित्र नाराज हो गये उन्होंने दस राजाओं को मिलाकर एक संघ बनाया और राजा सुदास पर आक्रमण कर दिया यह युद्ध रवी नदी के तट पर हुआ जहाँ पर सुदास की विजय हुई और दस राजाओं की हार 

आर्यावर्त और ब्रह्मावर्त का नामकरण 

दशराज्ञ युद्ध जीतने के बाद आर्यों ने पूर्व दिशा की ओर बढना शुरू कर दिया और कुरुक्षेत्र पर अपना अधिकार कर लिया और इस क्षेत्र का नाम ब्रह्मावर्त रखा इसके बाद गंगा यमुना के क्षेत्र पर अपना अधिकार कर लिया इस प्रकार आर्य आधुनिक बिहार तक पहुँच गए और इस क्षेत्र का नाम आर्यावर्त रखा इस प्रकार आर्यों द्वारा पाने अधिकार में लेने वाले क्षेत्र आधुनिक अफगानिस्तान, पकिस्तान, उत्तरप्रदेश, बिहार, बंगाल आदि क्षेत्र को आर्यावर्त नाम से चिह्नित किया था 

आर्यों के साहित्य 

आर्यों के प्रथम साहित्य वद थे जिनकी संख्या चार थी जो क्रमश: ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्वेद थे ऋग वेद सबसे प्राचीनतम वेद है और अथर्वेद सबसे नवीन वेद है 

वेदों का परिचय 

आर्यों द्वारा चार वेदों की रचना की गयी थी जिसमें सबसे पुराना ऋग्वेद व नवीनतम अथर्वेद है 

ऋग्वेद

ऋग्वेद का शाव्दिक अर्थ होता है श्लोकों का वेद इस वेद की रचना सम्भवत: सप्त सैन्धव प्रदेश में की गयी थी सप्त सैन्धव प्रदेश जोकि आधुनिक पकिस्तान पंजाब तथा अफगानिस्तान में हुई थी इस वेद में दस मंडल हैं इनमे वर्णित श्लोक को मन्त्र कहा कहा है और इन मन्त्रों के संग्रह को सूक्त कहा जाता है वेदों की इन सूक्तियों का संग्रह महर्षि वेदव्यास ( कृष्ण द्वैपायन ) ने किया था इन मन्त्रों के रचना कई ऋषियों की थी जिनमें विस्वमित, बशिष्ठ, वामदेव, भारद्वाज, जमदग्नि आदि ऋषि प्रमुख हैं ऋग्वेद के मंडल 2 से 7 को सबसे पुराना माना जाता है 
ऋग्वेद के तीसरे मंडल में गायत्री मन्त्र का वर्णन मिलता है जिसकी रचना महर्षि विस्वामित्र ने की जो सूर्य को समर्पित है ८वें मंडल में हस्त लिखित मन्त्र हैं जिन्हें खिल कहा जाता है 
ऋग वेद के 9वे मंडल में सोमरस को देवता की उपाधि दी गयी है इसके आलावा 10वें मंडल में वर्ण व्यवस्था का उल्लेख किया गया है लेकिन वेदानुसार वर्ण व्यवस्था कर्माधारित थी न कि जन्म पर 
इसी वेद में इंद्र को प्रसन्न करने के लिए 250 मन्त्र और अग्नि को प्रसन्न करने के लिए 200 मन्त्र की रचना की गयी है 

यजुर्वेद 

यह दसरा वेद है इस वेद में यज्ञ करने और उसके तरीकों का वर्णन किया गया है जिन्हें इस वेद में सविस्तार बताया गया है इस वेद को गद्द्  और पद्द दोनों विधाओं में लिखा गया है 

सामवेद 

यह तीसरा वेद है इस वेद में यज्ञ के अवसर पर गाये जाने वाले मन्त्र और संगीत का वर्णन किया गया है इस वेद को भारतीय संगीत का मूल कहा जाता है 

अथर्ववेद

यह चौथा वेद है इस वेद को अथर्वा ऋषि ने लिखा था इस वेद में रोग और उसका निवारण, तन्त्र मन्त्र, जादू टोना, वशीकरण, प्रेम विवाह, अंध विशवास आदि का वर्णन किया गया है इस वेद लड़कियों के जन्म की निंदा की गयी है 

राजनीतिक दशा 

ऐतरेय ब्राह्मण नामक ग्रन्थ में देवासुर संग्राम के बारे में बताया गया है इस ग्रन्थ में बताया गया है देवासुर संग्राम में देवताओं की राजा के न होने के कारण हार का सामना करना पड़ा और तब से इस सभ्यता में राजा का चुनाव होने लगा 

राजा

सभ्यता के वशाल समूह जिसेरास्त्र कहा जाता था उसका अधिपति राजा होता था जिसका कार्य सेना सम्बन्धित, प्रशासनिक कार्य और न्याय सम्बन्धी कार्य हुआ करते थे 

राज कर्मचारी 

राजा पने कर्मचारी नियुक्त करता था जिनमे प्रमुख पुरोहित, सेनापति, और ग्रामीण इलाके में मुखिया होता था जो गाँव का प्रमुख होता था 

सभा तथा समिति

राज्य में सभा व समिति होती थी जिसका नियन्त्रण राजा के पास होता था इनमें प्रमुख सभा भी होती थी जिसमें पुरोहित बर्ग को शामिल किया जाता था इसके अलावा समिति आम लोगों की एक बड़ी संस्था होती थी जिसमें आम लोगों को शामिल किया जाता था युद्ध आदि विशेष परिस्थितियों को छोडकर राजा अधिकतर अपनी सभा से ही सलाह लिया करता था जिसमें पुरोहित बर्ग शामिल था 

राजनीतिक संगठन

इस सभ्यता में परवार को कुल कहा जाता था तथा कुल के मुखिया को कुलप कहा जाता था कई कुलों के सन्गठन को ग्राम कहा जाता था और ग्राम के मुखिया को ग्रामीण कहा जाता था इसीप्रकार कई ग्रामों के संगठन को विश कहा जाता था तथा विश के मुखिया को विशपति कहा जाता था कई विश के संगठन को जन कहा जाता था जन के मुखिया को राजन कहा जता था तथा कई जन के मिलने से राष्ट्र का निर्माण होता था जिसका मुखिया राजा होता था 

युद्ध प्रणाली 

आर्यों की युद्ध प्रणाली बहुत ही शक्तिशाली थी आर्य की सेना में पैदल, घोडा, रथ आदि को सेना में प्रयोग किया करते थे यह धनुष, फरसा वाण, फरसा, भाले, आदि का युद्ध में उपयोग किया करते थे  

सामजिक दशा 

ऋग वैदिक कालीन सभ्यता में समाज को चार ब्र्गों बनता गया थो कर्म के अनुसार थे जो ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, और शुद्र थे इन्हें उनके कर्म के अनुसार माना जाता था यह वर्ण जन्म से नहीं आंके जाते थे 

खान पान

ऋग वैदिक कालीन सभ्यता में लोग दूध, घी, पनीर, सोम आदि का सेवन किया करते थे आर्य लहसुन, प्याज, नमक, मांस आदि का सेवन नहीं किया करते थे ऋग वेद में नमक का वर्णन नहीं मिलता है इस लिए सही से कह पाना मुस्किल है कि आर्य लोग नमक का प्रयोग करते थे अथवा नहीं करते थे लहसुन तथा प्याज के बारे में कहा गया इंक प्रयोग असुर किया करते थे असुर शायद द्रविण को कहा गया है 

आर्थिक दशा 

ऋग वैदिक कालीन सभ्यता में आर्य कृषि और पशुपालन का कार्य किया करते थे कृषि में सरसों, तिल, चावल, जों, मसूर आदि की पैदावार किया करते थे पशुपालन में गाय तथा घोड़ा उनके पमुख पशु थे आर्य लोग व्यापार नहीं किया करते थे 

धार्मिक कार्य

ऋग वैदिक कालीन सभ्यता में आर्य अग्नि और इंद्र की पूजा करते थे ऋग वेद में अग्नि को प्रसन्न करने के लिए 200 मन्त्र और इंद्र को प्रसन्न करने के लिए 250 मन्त्रों का उल्लेख मिलता है 

तो मित्रों यह थी ऋग वैदिक कालीन सभ्यता का सभ्यता का एक संक्षिप्त विवरण इस अभयता से पहले की सभ्यता हडप्पा सभ्यता को पढ़ें इसीप्रकार हमसे जुड़े रहिये और अपने विचार अह्में जरूर लिखें 

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