सप्तऋषि कण्व (एक महान ऋषि )

 सप्तऋषि कण्व 


कण्व ऋषि भारत के महान ऋषियों में से एक हैं ऋग वेद के आठवें मंडल की ऋचाएं मुख्यत: कुव ऋषि व उनके वंशजों द्वारा लिखी गएँ हैं इनके ही आश्रम भरत का लालन पोषण हुआ भरत वही राजा हैं जिनके पिता का नाम दुष्यंत और माता का नाम शकुन्तला था और इन्हीं भरत के नाम पर हमारे देश का नाम भारत पड़ा 
ऋषि कण्व का आश्रम सोनभद्र जिला से आठ किलोमीटर दूर कैमूर श्रंखला के शीर्ष पर स्थित है जो कड़ाकोट के नाम से प्रसिद्ध है 
एक कथा है जिसमें विश्वामित्र की तपस्या भंग करने को जब मेनका को इंद्र ने भेजा था तब मेनका ने विस्वमित्र की तपस्या भंग की और विश्वामित्र से मिल्न के बाद उनकी एक पुत्री हुई जब मेनका वापस स्वर्ग में जाने लगी तब अपनी पुत्री शकुन्तला को ऋषि कण्व के आश्रम में छोड़ कई थी वहीँ सह्कुंतला पली बढ़ी जब शकुंतला विवाह योग्य हो गई तब ऋषि कण्व के आश्रम में हस्तिनापुर के राजा दुष्यंत आये और उन्होंने शकुन्तला को देखा इसके बाद दोनों में प्रेम हो गया इसके बा इन दोनों का वहीं गन्धर्व विवाह भी होगया इसके बाद दुष्यंत शकुंतला को इस वाडे के वाद कि कुछ दिनों वाद उसे अपने महल में बुला लेगा वापस चले गए इधर शकुन्तला दुष्यंत के प्रेम में खोने लगी इसी बीच एक दिन जब शकुन्तला दुष्यंत के प्रेम खोयी हुई थी वहन ऋषि दुर्वासा का आगमन हुआ चूँकि शकुंतला दुष्यंत के प्रेम खोयी थी उन्हें दुर्वास ऋषि के आने का ज्ञान नहीं हुआ इसीलिये उन्होंने न तो ऋषि दुर्वास का स्वागत ही किया और न ही उन्हें प्रणाम किया जिससे ऋषि दुर्वास क्रोधित हो गए और उन्होंने शकुन्तला को श्राप दिया कि तुम जिसकी याद में खोयी हो वह तुम्हे भूल जायेगा और वाद में काफी क्षमा याचना के वाद ऋषि दुर्वासा ने कहा मैं अपने श्राप को तो खत्म नहीं कर सकता किन्तु उसका हल जरूर बताऊंगा जब शकुंतला दुष्यंत की दी हुई निशानी को दुष्यंत को दिखायेगी तो उसे सब याद आ जायेगा जब दुष्यंत शकुन्तला को छोड़ कर गये थे तब अपनी अंगूठी शकुंतला को निशानी के तौर पर दे गए थे 
उसके कच्छ दिन जब पता चला शकुन्तला गर्भवती है तो ऋषि कण्व ने अपने कुछ शिष्यों के साथ शकुन्तला को हस्तिनापुर में दुष्यंत के पास भेजा रस्ते में शकुन्तला की अंगूठी नदी में गिर गयी और जब शकुन्तला दुष्यंत के सामने पहुँची तब दुष्यंत ने उन्हें पहचानने से इनकार कर दिया और वापस भेज दिया शकुन्तला वापस कण्व ऋषि के आश्रम में आगएं वहीं उन्होंने एक पुत्र का जन्म दिया जिसका नाम भरत रखा गया 
कुछ दिनों वाद एक मछुआरे ने एक मछली पकड़ी जब उसका पेट फाड़ा गया तो उसमें वह अंगूठी निकली जब मछुआरा उस अंगूठी को बेचने बाजार गया तो वहा सिपाहियों ने उसे अंगूठी को पहचान लिया कि यह अंगूठी राजा की है और मछुआरे को पकड कर राजा के सामने पेश किया गया और वह अंगूठी राजा दुष्यंत के सामने पेश की गयी अंगूठी देख कर राजा को शकुन्तला की याद वापस आ गयी और दोबारा शकुन्तला से मिलने कुछ दिनों के बाद कंव ऋषी के आश्रम में गए जहाँ एक बालक को सिंह के शावकों के साथ खेलते देखा तो उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ जब उसक परिचय पूछा तो पता चला वह उन्हीं का पुत्र भरत है उसके वा शकुन्तला से मुलाकात हुई और शकुन्तला को राजमहल में ले आये बाद में यह भरत भुत ही प्रतापी राजा हुए और इन्हीं के नाम पर हमारे देश का नाम भारत पड़ा  

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