samajik jeevan me dhrm ke shuruaat सामाजिक जीवन में धर्म की शुरुआत

सामाजिक जीवन की शुरुआत 

भूमिका 

  जैसा कि  अभी तक हमने देखा की पृथ्वी का जन्म किन किन परिस्थितियों में हुआ।  इसके बाद में जीवन की शुरुआत जिन चरणों में हुई। मूलतः प्रारम्भिक जीवन जल में सूक्ष्म जलीय वनस्पतियों के रूप में हुआ था उसके बाद सूक्ष्म जलीय जीव इस प्रकार कई चरणों में जमीन के जीवो  का निर्माण हुआ फिर बानर बैनरों से मनुष्य आदि की उत्पत्ति हुई। मनुष्य एक असा जीव  हुआ जो अन्य जीवों से बहुत ही भिन्न रहा उसके पास कई ऐसी प्रकृति की दी हुई शक्तयां हुई जो उसे अन्य जीवों से भिन्न करती हैं। पृथ्वी का जन्म कैसे हुआ अथवा जीव की उतपत्ति कैसे हुई इसके लिए अनुसंधान हो रहे हैं तथा यहाँ हमारा बिषय भी यह नहीं है आगे अनुसंधानों से यह निश्चित हो जायगा की यह सब कैसे हुआ। 
  मनुष्य के पास अतिरिक्त दिमाग सोचने की शक्ति तथा जानने की इच्छा आदि से उसे काफी उन्नत जीव बनाया। इसके आलावा हंसने मुस्कुराने रोने भावनाये समझने तथा व्यक्त करने की भी शक्ति शामिल है। मनुष्य के अलावा कुछ अन्य जीवों में समाजिक रूप से रहने की क्षमता विकसित हुई जैसे चीटी,दीमक,मधुमक्खी आदि किन्तु इनके सामाजिक जीवन और मनुष्य के सामाजिक जीवन में बहुत ही बड़ा अंतर् रहा। इसप्रकार हम देखते हैं कि मनुष्य प्रकृति की अंत्यंत अदभुत कृति रही। 

सामाजिक जीवन 

 मनुष्य सामाजिक प्राणी है जहाँ तक हमारा अनुमान है कि मनुष्य चूँकि विचारशील रहा उसके सोचने समझने की क्षमता अन्य प्राणियों से अलग है जैसे की हम देखते हैं कई तरह के प्राणी समूह में रहना पसंद करते हैं इससे  उनकी असुरक्षा की संभावना काफी कम हो जाती है तथा भोजन आदि की भी समस्या को भी दूर क्र लेते हैं इसी तरह से मनुष्य भी शुरुआती दौर में समूह में रहते थे ज्यादातर मनुष्यों में नर स्त्रियों से शक्तिशाली हुआ करता है विपरीत लिंग के आकर्षण के कारण तथा भोजन संबंधी कारण आपस में झगड़ा आदि किया करता होगा ऐसे समूह जगह जगह हुआ करते होंगे एक समूह दूसरे समूह पर भोजन स्त्रियों आदि के लिए आक्रमण करते होंगे लीडरशिप न होने के कारण तथा एकता न होने के कारण कमजोर समूह शक्तिशाली समूह से हार जाता होगा इसलिए उन्होंने अपने अपने समूह के मुखिया को चुना शूरति दौर में मुखिया बो ही होता था अपने समूह में सबसे शक्तिशाली तथा निडर हुआ करता था जैसा कि  आजकल कुछ कबीलों में तथा आदिवासी लोगों में होता है।  

   इस तरह से मुखिया चुनने का चलन चला जो मुखिया हुआ करता था उसकी जिम्मेवारी होती थी की वह अपने समूह को अन्य समूह से सुरक्षा दे इसके बदले में समूह के अन्य लोग उसके लिए भोजन तथा स्त्रियों की व्यवस्था करते थे मनुष्य का स्वभाव है जब उसे भोजन आदि सहज उपलब्ध  हो जाती है तो मनुष्य विलासी होता हो जाता है चूंकि मुखिया को यह सब सहज मिलता था इसलिए उसकी इच्छएं और बढ़ती गयीं इसके लिए वह सुसरे समूह के क्षेत्र में दखल देने लगा और वहां से भोजन तथा स्त्रियों को बलात हासिल करने लगा ऐसा वह अपने क्षेत्र के लोगों के भोजन और स्त्रियों के साथ भी करने लगा अर्थात उनके हिस्से की स्त्रियों तथा भोजन को भी जबरदस्ती हासिल करने लगा चूँकि वह सबसे शक्तिशाली होता था अतः उससे टकराने की हिम्मत किसी की नहीं होती थी। इसके आलावा जब दूसरे समूह पर आक्रमण करता था तो अपने समूह के लोगों को डरा कर या लालच देकर लड़ने के लिए ले जाता था जरूरी यह नहीं तह कि जो समूह दूसरे समूह पर आक्रमण करता था बो जीतता था।  ऐसा भी होता था कि बो हार भी जाता तह ऐसे में दूसरा समूह उस समूह के साथ बो ही व्यवहार करता था जो बो उसके साथ करना चाह रहा था। 

धर्म की आवश्यकता 

  जब समूह का मुखिया अपने क्षेत्र तथा अन्य के क्षेत्र लोगों के साथ इस प्रकार की स्थितियां उतपन्न करने लगा तो उनके पास फिर से असुरक्षा  स्थिति उतपन्न हो गयी लेकिन अबकी बार जो स्थिति उतपन्न हुई बो उस व्यक्ति से हुई जिसे उसने अपनी सुरक्षा के लिए चुना था  स्थिति से निपटने के लिए उन लोगों ने कुछ नियम बनाये जो मुखिया लिए जरूरी थे इन नियमों से मुखिया पर अंकुश लगाना चाहा किन्तु मुखिया जो सबसे शक्तिशाली था एक तो वः उन नियमों को मानना जरूरी नहीं समझता था और यदि मानता था तो समूह के अन्य लोग उन  का शोषण करना शुरू कर देते थे ऐसी स्थिति में  लिए असुरक्षा कवातवरण तैयार होगया इस स्थिति से निपटने के लिए कुछ नए नियमों की आवश्यकता पड़ी मेरे विचार से ऐसे नियम तीन प्रकार के रहे होंगे 

1- मुखिया के मानने योग्य 
2- समूह के मानने  योग्य 
3- दोनों के  मानने योग्य 
इन नियमों को मनवाने में समस्याएं यह थी कि  मुखिया चूँकि शक्तिशाली था लिए जरूरी नहीं था कि बो इन नियमो को माने तथा बो समय समय  अपनी सुविधा के लिए इन नियमो ,में परिवर्तन भी करता रहता था। आलावा समूह चूंकि कई लोगों से मिलकर बनता था अतः उनकी सामूहिक शक्ति मुखिया से अधिक हो जाती थी अतः  कभी कभी समूह भी इन नियमों को नहीं मानते थे यही समस्या दोनों के लिए बनाये गए नियमों में होती थी अतः  यह सारे नियम कुछ  चले होंगे फिर इनका होना न होना एक बराबर हो गया होगा। 
इसके आलावा एक समस्या और थी वह समूह के विस्तारी करण की। जो नियम एक समूह का बनता था उसे दूसरा समूह नहीं मानता  था इसके आलावा यदि एक समूह किसी समूह का क्षेत्र जीतता था तो उस समूह के लोग जीतने  बाले  नियम मन से नहीं मानते थे और समय आने पर बिद्रोह कर देते थे इन सभी समस्याओं से निपटने के लिए कुछ ऐसे नियम बनाने की अवस्य्क्ता पड़ी जो सभी के लिए उचित हों और सभी माने तब तक मनुष्य भी इतना बुद्धिमान हो गया था कि  बो कुछ ऐसे  बनाये जिन्हे सभी लोग माने और सभी के लिए हितकर हों लेकिन आम जनता से कैसे मनवाया जाय यह भी एक समस्या थी तब एक नए शब्द का निर्माण हुआ उसे ही धर्म के नाम से लोग जानते हैं। 
  चूंकि संसार बहुत ही विस्तृत है और अलग अलग जगह की स्थितियां अलग अलग हैं इसलिए अलग अलग जगह पर अपने सुविधा के लिए अलग अलग धर्म का निर्माण हुआ। 
बस्तुतः देखा जय तो सभी धर्मो की मूल शिक्षायें लगभग एक सी हैं 
किन्तु कुछ स्वार्थी तत्वों ने धर्म की परिभाषा में निरंतर बदलाव किये और निजी स्वार्थ अथवा चंद लोगों के स्वार्थ के लिए अपने हिसाब से धर्म के नियमों में परिवर्तन कर लिया 

एक टिप्पणी भेजें

Thanks for comments

और नया पुराने