धर्मग्रन्थ क्या हैं
धर्मग्रन्थ वास्तव में किसी धर्म को समझाने उसकी शिक्षाओं को बताने बाली पुस्तकें होती हैं इन पुस्तकों से संबंधित धर्म का गुणगान किया जाता है तथा उसकी शिक्षायें लोगों के सामने रखी जाती हैं तथा लोगों से उम्मीद की जाती है कि बो उस ग्रंथ में लिखी बातों को सच मानें और जो लोग उस धर्म जुड़े होते हैं उन्हें डर अथवा लालच दिखा कर सच मनवाया जाता है धर्म के ग्रंथों को गलत बताने बाला पापी माना जाता है और उसे समाज से बहिष्कृत तक किया जा सकता है जहाँ तक मेरा विचार हैं शुरुआत में इन ग्रंथों को वास्तव में मानव कल्याण के लिए रचा गया होगा किन्तु समय समय पर उसमे परिवर्तन भी होते रहे जो किसी समुदाय या बर्ग विशेष के लाभ के लिए होता रहा चूँकि मान्यता यही रही कि इनमे जो लिखा बो सत्य है और मानना मनुष्य के लिए अनिवार्य है लोगों मानना ही पड़ता था
धर्मग्रंथों में परिवर्तन
समय समय पर एक से एक ताकतवर राजा हुये हैं राजा भी ऐसे ऐसे जिन्होंने एक बहुत बड़ा भाग अपने कब्जे में रखा इन राजाओं को पुराने धर्म के नियमो को अपनाने में मुश्किल हुई अथवा अपना नियम जिससे इन्हे प्रसिद्ध मिल सके बनाने के आवश्यकता महसूस हुई इन्होने उस समय के जो धर्म गुरु हुआ करते थे उन्हें बुला कर अपने सुविधा के अनुसार नए नियम बनवाये होंगे चूँकि उनकी बात न मानने बाला जीवित नहीं रह सकता था इसलिए जिन लोगों बनाये और जिन्होंने माने बो ही लोग बचे नियम चाहे इच्छा अथवा अनिच्छा से माने उन्हें कुल मिला कर मानना ही पड़ा और उसके बाद धर्म के बो नियम चल पड़े उसके बाद जब इसी तरह का कोई दूसरा राजा हुआ तो वह पिछले राजा के बनाये नियम क्यों माने उसने नए नियम बनाये जनता को उस समय के राजा अपना गुलाम समझते थे यह नियम राजा और उनके कुछ खास चटुकारों के हितों को ध्यान में रख कर ही बनाये जाते थे इन सामन्य जनता का बहुत ही मामूली ध्यान रखा जाता था वह भी इस लिए क्यूंकि राजा पूरी तरह से जनता पर ही नर्भर था और जनता विद्रोह न कर दे हालंकि छोटे मोटे विद्रोह दबा दिए जाते थ किन्तु यदि बड़ा हो जाता था तो राजा और उसके चटुकारों को लेने के देने भी पड़ सकता था आलावा राजा प्रजा के कमाई पर ही निर्भर था इस तरह समय समय पर प्रत्येक धर्मों में जब तब परिवर्तन होते रहे और चूँकि परिवर्तन उन लोगों के हित में होते थे जो लोग सक्षम होते थे रहे और गरीब जनता इच्छा अथवा अनिच्छा से उन्हें मानने को मजबूर होती रही
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