भक्त प्रह्लाद की जीवन गाथा: प्रभु भक्ति और यत्नों की असीम प्रेरणा
भक्त प्रहलाद एक महान विष्णु भक्त थे इन्होने अपने बाल्यकाल में ही भगवान विष्णु से असीम निष्ठा और भक्ति प्राप्त कर ली थी इनकी प्रबल भक्ति और भगवान् विष्णु से असीम निष्ठा के कारण अपने पिता के कई यातनाएं सहने के बाद भी इनकी विष्णु भक्ति और निष्ठा में कोई कमी नहीं आयी और अंत में भगवान विष्णु ने स्वय नरसिंह अवतार लेकर हिर्यनाकशयप का बध कर दिया
प्रह्लाद के माता-पिता: हिरण्यकश्यप और कयाधु
प्रहलाद के पिता का नाम हिरण्यकश्यप तथा माता का नाम कयाधु, था हिरण्यकश्यप एक निरकुश और अत्याचारी राजा था। जो भगववान विष्णु से बहुत घृणा करता था । और किसी को भी भगवान् को नहीं मानता और खुद को हे सर्वे सर्वा मान लिया था । किन्तु इनकी माता कयाधू एक क सौम्य और धैर्यवान महिला थीं। कयाधु ने प्रह्लाद का पालन-पोषण प्रेम और करुणा से किया, लेकिन अपने पति हिरण्यकश्यप के डर से वे कभी भी प्रह्लाद की भक्ति में खुलकर उनका समर्थन नहीं कर पाईं।
प्रह्लाद को भक्ति की प्रेरणा कहाँ से मिली?
यह सवाल अक्सर उठता है कि एक ऐसे पिता का पुत्र, जो भगवान से घृणा करता था, कैसे भगवान विष्णु का महान भक्त बन गया? इसका उत्तर उनकी माता के गर्भकाल में ही छिपा है। जब कयाधु गर्भवती थीं, तब देवताओं ने हिरण्यकश्यप के आतंक से डरकर उन्हें बंदी बना लिया था। उस समय, ऋषि नारद ने कयाधु को अपने आश्रम में आश्रय दिया और उन्हें धर्म और भक्ति की शिक्षा दी। यही समय था जब गर्भ में पल रहे प्रह्लाद ने नारदजी के उपदेशों को सुना और प्रभु भक्ति की ओर आकर्षित हो गए।
प्रह्लाद का गुरु और उनकी शिक्षा
प्रह्लाद का मुख्य गुरु नारद मुनि को माना जाता है, लेकिन जब वे बड़े हुए, तो हिरण्यकश्यप ने उन्हें असुर गुरु शुक्राचार्य के पुत्रों के पास भेजा। वहाँ उन्हें शास्त्र और अन्य विषयों की शिक्षा दी गई। लेकिन प्रह्लाद ने अपने शिक्षकों की बातों से ज्यादा भगवान विष्णु के प्रति अपनी भक्ति को महत्व दिया। वे हमेशा भगवान का ध्यान करते और अपनी भक्ति में मग्न रहते।
जब उनके शिक्षकों ने उनसे पूछा कि वे राजा बनने के लिए क्या सीख रहे हैं, तो प्रह्लाद ने कहा, "संसार के सभी जीवों का रक्षक केवल भगवान विष्णु हैं, मैं उन्हीं की भक्ति करता हूँ।" यह सुनकर उनके शिक्षक और पिता दोनों ही क्रोधित हो गए।
पिता हिरण्यकश्यप द्वारा दी गई यत्नें
हिरण्यकश्यप को जब पता चला कि उनका बेटा भगवान विष्णु की भक्ति कर रहा है, तो उनका क्रोध चरम सीमा पर पहुंच गया। उन्होंने प्रह्लाद को इस भक्ति से रोकने के लिए हर संभव यत्न किए।
विषपान
हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को विषपान करवा कर मारने की कोशिश की, लेकिन विष का कोई असर नहीं हुआ। भगवान की कृपा से विष अमृत बन गया।
हाथियों से कुचलवाना
हिरण्यकश्यप ने बड़े-बड़े हाथियों से प्रह्लाद को कुचलवाने की कोशिश की, लेकिन हाथी भी उनका कुछ नहीं बिगाड़ सके। प्रह्लाद सुरक्षित रहे क्योंकि भगवान विष्णु की अनंत कृपा उनके साथ थी।
जलती हुई आग में फेंकना (होलीका की कहानी)
हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलीका को प्रह्लाद को जलाने का आदेश दिया। होलीका को वरदान था कि वह आग में नहीं जलेगी, लेकिन जब उसने प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर जलती चिता में बैठाया, तो भगवान विष्णु की कृपा से होलीका जल गई और प्रह्लाद सुरक्षित बच गए। यही घटना होली का त्यौहार मनाने की प्रेरणा बनी।
विषधर सर्पों के बीच फेंकना
प्रह्लाद को विषधर सर्पों के बीच भी डाला गया, परंतु सर्पों ने उन्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचाया। यह एक और उदाहरण था कि ईश्वर की भक्ति में कितनी शक्ति होती है।
भक्त प्रह्लाद की अटूट भक्ति और हिरण्यकश्यप का अंत
इन सभी यत्नों के बाद भी प्रह्लाद की भक्ति और विश्वास अडिग रहा। आखिरकार, हिरण्यकश्यप ने क्रोधित होकर स्वयं प्रह्लाद को मारने का प्रयास किया। लेकिन तब भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार लेकर हिरण्यकश्यप का अंत किया। यह घटना यह सिखाती है कि चाहे कितनी भी बाधाएं आ जाएं, यदि आप सच्चे दिल से भगवान की भक्ति करते हैं, तो भगवान आपकी रक्षा अवश्य करेंगे।
प्रह्लाद की भक्ति से हमें क्या सीख मिलती है?
प्रह्लाद की कहानी यह सिखाती है कि सच्ची भक्ति और निष्ठा के सामने कोई भी शक्ति टिक नहीं सकती। चाहे दुनिया आपके खिलाफ हो, चाहे कितनी भी मुश्किलें आएं, अगर आपके मन में सच्ची भक्ति और विश्वास है, तो भगवान आपके साथ होते हैं।
भक्ति में धैर्य और विश्वास आवश्यक है
प्रह्लाद ने कभी हार नहीं मानी। उन्होंने हर यत्न का सामना किया और भगवान पर अपना अटूट विश्वास बनाए रखा। हमें भी अपनी भक्ति में धैर्य और विश्वास रखना चाहिए।
कठिनाइयाँ भक्ति की परीक्षा हैं
प्रह्लाद की तरह, हमारी जिंदगी में भी कठिनाइयाँ आती हैं, जो हमारी भक्ति और विश्वास की परीक्षा लेती हैं। हमें इन परीक्षाओं का सामना दृढ़ता और साहस से करना चाहिए।