ध्रुव की कथा: अपमान से तपस्या और भगवान विष्णु की कृपा तक की प्रेरणादायक यात्रा
ध्रुव की कहानी भारतीय पुराणों में एक अत्यंत प्रेरणादायक कथा के रूप में वर्णित है, जिसमें एक छोटे बालक ने कठोर तपस्या के बल पर भगवान विष्णु को प्रसन्न कर आकाश में ध्रुव तारा के रूप में अपनी अमरता प्राप्त की। यह कथा भक्ति, निष्ठा, और दृढ़ संकल्प का एक अद्भुत उदाहरण है, जो आज भी हर उम्र के लोगों को प्रेरित करती है।
ध्रुव का जन्म और पारिवारिक पृष्ठभूमि
ध्रुव का जन्म राजा उत्तानपाद के पुत्र के रूप में हुआ था, जो सूर्यवंशी राजा थे। उत्तानपाद के दो रानियाँ थीं – सुनीति और सुरुचि। ध्रुव की माँ का नाम सुनीति था, लेकिन राजा उत्तानपाद अपनी दूसरी रानी सुरुचि से अधिक प्रेम करते थे। ध्रुव की सौतेली माँ सुरुचि को ध्रुव घृणा थी वह अपने पुत्र को राजा का विशेष बनाना चाहती थी इसलिए ध्रुव को हमेशा अपमानित करटी रहती थी।
अपमान और भक्ति का संकल्प
एक दिन, जब ध्रुव अपने पिता की गोद पर बैठना चाहता था, उसकी सौतेली माँ सुरुचि ने उसे रोक दिया और उसे अपमानित करते हुए कहा कि वह राजा के गोद में बैठने के योग्य नहीं है।और उसे अपमानित करते हुए वहां से भगा दिया जिससे ध्रुव बहुत दुखी हुए।
कठोर तपस्या और भगवान विष्णु का आशीर्वाद
ध्रुव की माता को ध्रुव का दुःख देखा नहीं गया । जब उन्होंने दुःख का कारण जाना तो उन्हों ने ध्रुव को समझाते हुए कहा हमें नारायण की शरण में जाना चाहिए उनकी गोद सबसे ध्रेष्ठ है। ध्रुव के बाल मन नेअब सबसे श्रेष्ठ गोद नारायण की गोद में जाने का प्रण ले लिया। और नारायण की गोद में बैठने का उपाय खोजने लगा। नारद ऋषि ने ध्रुव का मार्गदर्शन किया। ध्रुव अपनी छोटी उम्र के बावजूद, अकेले जंगल में जाकर भगवान नारायण की कठोर तपस्या में लीन हो गया। उसने आहार, जल और अन्य सभी सांसारिक सुविधाओं को त्यागकर अपनी तपस्या शुरू की। उसकी तपस्या इतनी प्रबल थी कि स्वयं भगवान विष्णु उससे प्रभावित हुए। उन्होंने ध्रुव को दर्शन दिए और उससे वरदान माँगने को कहा।
ध्रुव ने भगवान विष्णु से केवल आशीर्वाद नहीं माँगा, बल्कि सच्ची भक्ति की महत्ता को समझते हुए कहा कि वह सिर्फ भगवान की कृपा चाहता है। भगवान विष्णु ने उसकी भक्ति और निष्ठा को देखकर उसे आकाश में अटल ध्रुव तारे के रूप में स्थापित किया, जो हमेशा के लिए स्थिर रहेगा।
ध्रुव तारा: दृढ़ संकल्प का प्रतीक
ध्रुव तारा भारतीय पुराणों में ध्रुव की निष्ठा और अडिगता का प्रतीक माना जाता है। यह तारा आज भी आकाश में अटल रूप से चमकता है और हमें यह सिखाता है कि कोई भी मनुष्य अपने दृढ़ संकल्प और भक्ति से अमर हो सकता है। ध्रुव की कथा हमें यह सिखाती है कि न सिर्फ भक्ति, बल्कि अपने लक्ष्य के प्रति अडिग रहना ही सच्ची सफलता की कुंजी है।
ध्रुव की कथा से प्रेरणा
ध्रुव की कहानी केवल एक पौराणिक कथा नहीं, बल्कि यह हर मनुष्य के लिए जीवन के कठिन समय में प्रेरणा का स्रोत है। ध्रुव ने हमें यह सिखाया कि चाहे दुनिया हमें कितना भी अपमानित करे या हमारे रास्ते में कितनी भी कठिनाइयाँ आएँ, अगर हमारी निष्ठा और विश्वास सच्चे हैं, तो भगवान भी हमारी सहायता करने को तैयार रहते हैं।
ध्रुव की तपस्या हमें यह सिखाती है कि हम अपनी छोटी उम्र में भी बड़े सपने देख सकते हैं और उन्हें प्राप्त कर सकते हैं, अगर हमारे अंदर सच्ची भक्ति, संकल्प और धैर्य है।
निष्कर्ष: ध्रुव की कथा एक साधारण बालक से एक महान नक्षत्र बनने की अद्भुत कहानी है, जो हमें यह सिखाती है कि असंभव कुछ भी नहीं है।