शब्दों की शक्ति (एक लोककथा)
बुनकर की "बवंडर, बवंडर" की आवाज़ सुनकर सभी पक्षी उड़ गए। बाज बहुत गुस्से में आ गया। उसने बुनकर पर चिल्लाया, "तुमने मेरा शिकार बर्बाद कर दिया! अब से ध्यान रखना, कहो पकड़ो! पकड़ो!"
बुनकर जोर-जोर से "पकड़ो! पकड़ो!" चिल्लाता रहा। रास्ते में कुछ चोर अपना माल गिन रहे थे। बुनकर की आवाज़ सुनकर वे डर गए। फिर उन्होंने देखा कि वह तो अकेला बुनकर है। चोरों ने उसे पकड़ लिया और गुस्से में पूछा, "ये क्या बकवास कर रहे हो? क्या तुम चाहते हो कि हम तुम्हें मार दें? तुम्हें कहना चाहिए, 'रख लो, और लाओ, समझे?'"
बुनकर, अभी भी सदमे में, "रख लो, और लाओ" चिल्लाता हुआ आगे बढ़ा। जब वह श्मशान घाट से गुजरा, तो गाँव वाले वहाँ शवों का अंतिम संस्कार कर रहे थे। उस गाँव में महामारी फैली थी। गाँव वालों ने जब बुनकर को "रख लो, और लाओ" कहते सुना, तो वे बहुत गुस्सा हो गए। उन्होंने चिल्लाकर कहा, "तुम्हें शर्म नहीं आती? हमारे गाँव में इतना दुख है और तुम ऐसा बोल रहे हो। तुम्हें कहना चाहिए, 'यह बहुत बड़ा दुख है।'"
बुनकर शर्म से पानी-पानी हो गया। वह "यह बहुत बड़ा दुख है" कहता हुआ आगे बढ़ा। कुछ देर बाद वह एक शादी के जुलूस से गुजरा। जुलूस में लोग उसे सुनकर सोचने लगे कि वह उनका मजाक उड़ा रहा है और उसे पीटने की तैयारी करने लगे। बड़ी मुश्किल से उसने समझाया, "सीधे चलते रहो, और हाँ, अब तुम्हें कहना चाहिए - ऐसा सुख तुम्हारे भाग्य में आए।"
अब बुनकर यही दोहराते हुए आगे बढ़ता रहा। अंधेरा होने पर उसने अपनी पत्नी की हिदायत याद की कि रात जहाँ भी हो, वहीं सो जाना। बुनकर थका हुआ था। वह वहीं सो गया।
अगले दिन जब उसके चेहरे पर पानी छिड़का गया तो बुनकर जल्दी से उठ गया। जब उसने अपनी आँखें खोलीं, तो देखा कि वह अपने ही घर में है। और अभी-अभी उसकी पत्नी ने उस पर पानी फेंका था। बुनकर ने मुस्कुराते हुए कहा, "ऐसा सुख तुम्हारे भाग्य में आए।"