शतमन्यु: देशभक्ति की उदाहरण
एक समय की बात है, जब देश में दुर्भिक्षा ने अपने प्रहार की ओर बढ़ता गया। वर्षा का अभाव ने अन्न और चारा की कमी को गहराया। नदियों और तालाबों का सूखना, धरती को कुशलताहीन बना दिया। जीवन की शक्ति और साथी, पेड़-पौधों में संचित सजीवता का साया भी मुट्ठी भर के ही बचा था।
दुर्भिक्षा की त्रासदी बढ़ती चली गई। वर्षों तक वर्षा का अभाव रहा, जिससे लोगों को अनावृष्टि की भारी परेशानी हुई। धरती के हर कोने में अब बस एक ही सीज़न था - गर्मियों में धूल और तेज लू। पक्षियों की उड़ान, पशु-पक्षियों का संगीत, सब कुछ अब दुर्लभ हो गया था। न केवल पशुओं, बल्कि मानव भी इस अज्ञात कल के गहरे गर्त में डूबने लगे। उनके आँचल में अब आहार की खोज बनी रहती थी, और अधिकांश अपनी मजबूरी में अपने प्रियजनों को देखते रह जाते थे। ऐसे में, धन-दौलत का कोई मायने नहीं रह गया।
इस संकट में, किसी ने एक सुनहरी संभावना को पुनर्जागरूक किया - नरमेघ यज्ञ! लोगों ने इस आशा के साथ एकत्र होकर इसे बारीकी से सुना। और फिर एक दिन, उन्हें एक अद्भुत बालक का दर्शन हुआ। उसकी निर्मलता, उसकी अनादर्णता, सब ने लोगों को आकर्षित किया।
शतमन्यु, उस बालक के नाम से, ने बोला - "वत्स! मैं तुम्हें अपनी रक्षा और देश के लिए अपने प्राणों की प्राप्ति के लिए समर्थ हूँ।
" उसकी वीरता और दृढ़ संकल्प ने सभी को चौंका दिया।
शतमन्यु ने यज्ञ में भाग लिया, और अपनी बलिदानी भावना से देवों को प्रसन्न किया। उसकी प्रार्थना और त्याग ने अंततः बारिश की ओर बढ़ावा दिया।
बारिश के साथ, जीवन ने फिर से नई उम्मीद की किरण को महसूस किया। शतमन्यु की देशभक्ति ने लोगों में एक सामूहिक ऊर्जा का संचार किया, और उन्होंने एक साथ मिलकर संकट को परास्त किया।
इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि एक निर्धारित और ईमानदार उद्देश्य के लिए किया गया संघर्ष कितना भी कठिन हो, लेकिन अगर हम संयम और सामर्थ्य से काम करें, तो हम किसी भी संघर्ष को परास्त कर सकते हैं। शतमन्यु ने अपने देशभक्ति और निःस्वार्थ सेवाभाव के माध्यम से न केवल अपने देश की मदद की, बल्कि एक प्रेरणा भी स्थापित की है, जो हर किसी के लिए एक सीखने योग्य उदाहरण है।