सप्त ऋषि जमदग्नि ऋषि की कथा

सप्त ऋषि जमदग्नि ऋषि की कथा 



परशुराम के पिता और ऋषि ऋषि ऋचीक के पुत्र ऋषि जमदग्नि का नाम हिन्दू धर्म में बहुत ही आदर के साथ लिया जाता है महाऋषि जमदग्नि ऋषि ऋचीक के पुत्र और भगवान् परुशराम के पुत्र थे यह भृगु वंशी और सप्त ऋषियों में से एक थे इनकी पत्नी का नाम रेणुका था इनका आश्रम सरस्वती नदी के तट पर स्थित था 
पुराणों के अनुसार ऋषि जमदग्नि के पास एक गाय थी जो समस्त इच्छाओं की पूर्ति किया करती थी तत्कालीन राजा कार्तवीर्य ने बल पूर्वक इनसे इनकी गे को छीन लिया था जब इनके पुत्र परशुराम को यह बात पता चली तो उन्होंने कार्तवीर्य को मारकर अपने पिता की गाय को वापस ले आये थे इसके बाद इक्कीस बार सम्पूर्ण धरती पर से क्षत्रियों को खोज खोज के मार डाला परुशराम ने अपने पिता का अंतिम संस्कार महाराष्ट्र के नांदेड जिला में किया था यहीं पर रेणुका माता का एक मंदिर भी स्थित है जो कि प्रमुख शक्ति पीठों में से एक बता या जाता है 
इनका एक आश्रम हरियाणा प्रदेश के कैथल जिला के उत्तरपूर्व 28 किलोमीटर दूर जज्नापुर में स्थित है यह आश्रम इनका मुख्य आश्रम बताया जाता है इसके अलावा अरुणाचल प्रदेश में लोहित नदी के तट पर परुशराम कुंद स्थित है कहते हैं एक बार अपने पिटा के कहने पर परुशराम ने अपनी माता का सर उनके धड से अलग कर दिया था जिसका परुशराम को पाप लगा था उसका प्रायश्चित करने के लिए परुशराम ने लोहित नदी के तट पर स्नान किया था उससे जगह को परुशराम कुंड के नाम से जाना जाता है 
जमदग्नि का शाब्दिक अर्थ है आग को भस्म करने वाला कहती हैं छाता और पैर के खडाऊं के अविष्कारक जमदग्नि ऋषि ही थे इस प्रकार ऋषि जमदग्नि ने मानवता और समाज की लिए बहुत ही अद्भुत कार्य किये थे जिनका मानव समाज हमेशा रिनी रहेगा 

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