सप्त ऋषि गुरु बशिष्ठ

 सप्त ऋषि गुरु बशिष्ठ 

एक ऐसे ऋषि जिन्होंने अपने सौ पुत्रों की हत्या करने वाले को क्षमा कर दिया 

चित्र कल्प्नाधारित

इक्ष्वाकु वंश (सूर्य वंश) जिस वंश में श्री राम चन्द्र जी ने जन्म लिया उसी वंश के कुलगुरु ऋषि बशिष्ठ हुआ करते थे ऋषि बशिष्ठ क्षमा शील, विद्वान, शास्त्रों के ज्ञाता थे इन्हें ब्रम्हा के मानस पुत्र कहा जाता है इन्हें ब्रम्हां के प्राण वायु से जन्मा कहा जाता है यह सातवें सप्रत ऋषि हैं 
सप्त ऋषि तारामंडल 
सप्त ऋषि तारामंडल है जिसमें भारत के 7 महान ऋषियों के नाम पर तारों के नाम लिखे जो क्रमश: 
वशिष्ठ ", " मारीचि ", " पुलस्त्य ", " पुलहा ", " अत्रि "," अंगिरस "और" क्रतु " हैं इसके आलावा इन तारा मंडल में एक अन्य तारा है जिसे अरुंधती कहते हैं अरुंधती बशिष्ठ की पत्नी का नाम है बशिष्ठ ऋषि की पत्नी भी अत्यंत विदुषी महिला थी 

बशिष्ठ और विश्वामित्र की कहानी 

ऋषि बशिष्ठ का आश्रम सिन्धु नदी के किनारे कहा जाता है इसके आलावा इनका आश्रम सरयू नदी के किनारे भी बताया गया था एक बार कौशिक (विश्वामित्र को कौशिक भी कहते हैं इसके आलावा इनका ऋषि बनने से पहले विश्वरथ नाम भी था ) अपने हजारों सहचरों के साथ इनके आश्रम में आये बशिष्ठ ने उनकी आव भगत करने के लिए पूछा कौशिक ने सोचा इतने सारे सहचरों के लिए प्रबंध करना बशिष्ठ के लिए आसान नहीं होगा अत: उन्होंने कहा मैं केवल आपका दर्शन करने के लिए आया था दर्शन कर लिए हैं अब मुझे आज्ञा दीजिये किन्तु बशिष्ठ ने उन्हें बताया कि उनके पास कामधेनु की बछिया नंदिनी है अत: आपकी और आपके सहचरों की आवभगत करने में मुझे कोई असुविधा नहीं होगी कौतुहल वश कैशिक ने वहा रुकने और नादिनी का चमत्कार देखने का निर्णय लिया बशिष्ठ ने नंदिनी की सहायता से उनकी मन चाही आव भगत की कौशिक को यह देख कर बहुत ही आश्चर्य हुआ उन्होंने बशिष्ठ से उस बछिया को देने के लिए कहा किन्तु बशिष्ठ ने मना कर दिया जिससे कौशिक कुपित हो गए और उन्होंने बशिष्ठ से उस बछिया (गाय का बच्चा) को छीनने के लिए प्रयास किया जिससे कौशिक और बशिष्ठ के बीच युद्ध शुरू होगया किन्तु उस युद्ध में कौशिक हार गए किन्तु बशिष्ठ के 100 पुत्रों को कौशिक ने क़त्ल कर दिया उसके बाद कौशिक ने हिमालय पर जाक र घोर तपस्या की और कई प्रकार के दिव्य अस्त्र शस्त्र प्राप्त किये दोबारा फिर उन्होंने बशिष्ठ के आश्रम पर चढ़ाई की किन्तु किसी भी प्रकार वे बशिष्ठ ऋषि से जीत नहीं पाए अंत में उन्होंने ब्रम्हास्त्र का प्रयोग किया बशिष्ठ ने ब्रम्हास्त्र को भी विफल कर दिया अब कौशिक ने छल से बशिष्ठ को जीतने का निर्णय लिया और रात को बशिष्ठ की कुतिया के पास पहुंचा वहां उन्होंने बशिष्ठ के मुख से अपनी प्रसंशा सूनी जिसे सुन कर उनका मन ग्लानी से भर गया उन्होंने जाकर बशिष्ठ से क्षमा याचना की बशिष्ठ ने अपने सौ पुत्रों के हत्यारे को क्षमा कर दिया आगे चल कर बशिष्ठ ने कौशिक को विश्वामित्र की उपाधि दी और उनका नाम ब्रम्ह ऋषियों में भी शामिल किया 
बशिष्ठ का शाब्दिक अर्थ अत्यंत प्रकाशवान, अत्यंत उत्कृष्ट, अत्यंत श्रेष्ठ, अत्यंत महिमावान होता है इनका वर्णन ऋगु वेद के सातवें व् द्शमें मंडल में उल्लेख है इसके अतिरिक्त अग्नि पुराण व अन्य पुराणों में भी इनका विस्तृत उल्लेख है रामायण में भी इनका काफी उल्लेख है 
ऋषि बशिष्ठ शांति प्रिय, परम ज्ञानी व महान ऋषि थे यह क्षमा शील भी थे अपने 100 पुत्रों के हत्यारे को आसानी से क्षमा करना इनका एक बहुत बड़ा उदाहरण है 
ऋषि बशिष्ठ ने बशिष्ठ धर्म सूत्र, योग बशिष्ठ रामायण, बशिष्ठ संहिता, बशिष्ठ पुराण आदि ग्रन्थों की रचना की 

बशिष्ठ के  आश्रम  और मंदिर 

इनका आश्रम अयोध्या में है इसके अलावा आसाम के गुवाहाटी में इनका भव्य मंदिर व आश्रम है यह मंदिर असम मेघालय की सीमा के पास स्थिति यह आश्रम असम का मुख्य पर्यटन स्थल है इसके आलावा हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में भी इनका आश्रम और मंदिर है उत्तराखंड के ऋषीकेश में बशिष्ठ गुफा स्थिति है इस गुफा के पास ही अरुंधती गुफा और एक शिव मंदिर भी है दक्षिण भारत में केरल में भीबशिष्ठ का रक मंदिर स्थित है यह मंदिर अर्ददुपुजा  के नाम से प्रसिद्द है जिसके मुख्य देवता ऋषि बशिष्ठ ही है 
ऋषि बशिष्ठ का नाम हिन्दू धर्म ग्रन्थों में काफी पहले से उपस्थित है 

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